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राफेल विमान सौदे का ‘काला’ रहस्य…!

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फ्रांस की जिस कंपनी डास्सू एविएशन ने अपने 76 सालों के इतिहास में एक भी जहाज विदेश में न बेचा हो, उसे अचानक भारतीय वायुसेना से 126 राफेल युद्धक विमानों का ऑर्डर मिल जाना किसी को भी चौंका सकता है। वह भी तब, जब सौदा 15 अरब से 20 अरब डॉलर (75,000 करोड़ से एक लाख करोड़ रुपए) का हो। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सारकोज़ी ने पिछले हफ्ते मंगलवार, 31 जनवरी को भारत सरकार के इस फैसले के बाद कहा था, “हम तीस सालों से इस दिन का इंतज़ार कर रहे थे।”

भारत की हथियार लॉबी ने राफेल विमानों की तारीफ के पुल बांधने शुरू कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि जैसे राफेल को अपना वतन मिल गया हो और बस, अब भारत में इसके डिजाइन और विकास की क्षमता बनाने की जरूरत है। लेकिन जनता पार्टी के अध्यक्ष और अभी-अभी सुप्रीम कोर्ट में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार को हरानेवाले डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की मानें तो यह सौदा फ्रांस सरकार द्वारा यूपीए के शीर्ष मंत्रियों की ब्लैकमेलिंग का प्रतिफल है।

डॉ. स्वामी ने दो दिन पहले रविवार को मुंबई में आयोजित एक समारोह में बताया कि फ्रांस की सरकार ने महीनों पहले यूपीए सरकार को उन 788 भारतीयों की सूची सौंप दी थी, जिन्होंने स्विटजरलैंड में एचएसबीसी बैंक में गोपनीय खाते खोलकर उनमें अपना काला धन रखा हुआ है। असल में फ्रांस की सरकार यह पता लगाने में जुटी थी कि उसके किन नागरिकों ने अपनी अवैध कमाई स्विटजरलैंड में छिपाकर रखी हुई है। इसे जानने के लिए उसने जिनेवा के एचएसबीसी बैंक से संपर्क किया तो उसने आधिकारिक तौर पर यह जानकारी देने से मना कर दिया। लेकिन फ्रांस की सरकार ने बैंक के ही एक शीर्ष अधिकारी को लंबी-चौड़ी रिश्वत खिलाकर पूरी दुनिया के अवैध धन रखनेवालों की सूची हासिल कर ली। उसके बाद उसने इस सूची से तमाम उन देशों को उनके उन बाशिंदों के नाम भेज दिए जिन्होंने एचएसबीसी में काला धन रखा हुआ है।

यह जानकारी विकीलीक्स तक भी पहुंच गई। विकीलीक्स ने बताया कि इस सूची में राजनेताओं, क्रिकेट खिलाड़ियों, कॉरपोरेट जगत की कुछ हस्तियों और फिल्म स्टारों तक के नाम हैं। इसके बाद कुछ राजनीतिक दलों ने यूपीए सरकार से यह सूची सामने लाने की बात की है। यहां तक कि बीजेपी के सांसद वरुण गांधी ने सूचना अधिकार कानून, आरटीआई के तहत इन नामों को जानने की अर्जी लगा रखी है।

इस बीच 10 नवंबर 2011 को मुंबई के आयकर विभाग ने सूत्रों के हवाले यह खबर छपवाकर मामले को बेदम करने की कोशिश की कि इस सूची में शामिल 17 भारतीयों ने स्वेच्छा से अपने गोपनीय खातों की जानकारी दे दी है और उनके खातों में 50 करोड़ से लेकर 300 करोड़ रुपए जमा हैं। फिर मामले को न तो मीडिया ने उठाया, न ही विपक्ष ने। अब डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना है कि फ्रांसीसी कंपनी से राफेल युद्धक विमान खरीदने के पीछे सरकार में शामिल कुछ ऐसे मंत्री या अधिकारी हो सकते हैं जो फैसले कराने का दमखम रखते हैं।

डॉ. स्वामी ने किसी को नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा यूपीए सरकार की शीर्ष कमान संभालनेवालों की तरफ था। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व्यक्तिगत रूप से ईमानदार व्यक्ति हैं। जिस तरह भीष्म पितामह को द्रोपदी का चीरहरण चुपचाप देखने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, उसी तरह मनमोहन सिंह को भ्रष्टाचार का दोषी नहीं माना जा सकता।

जनता पार्टी के अध्यक्ष ने यह भी बताया कि जर्मन सरकार अवैध धन छिपाने के एक और स्वर्ग, अपने पड़ोसी देश लीचटेनस्टाइन (मात्र 162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल) के बैंक के शीर्ष अधिकारी को 45 करोड़ डॉलर की घूस खिलाकर अवैध धन रखनेवालों की सूची हासिल कर ली। इसमें 24 देशों के लोगों के नाम थे। जर्मन सरकार ने इन सभी 24 देशों की सरकारों को पत्र भेजकर कहा कि वे चाहें तो वह लीचटेनस्टाइन बैंक में अवैध धन रखनेवाले उनके नागरिकों की सूची भेज सकता है। 23 देशों ने फौरन हां कर दी। लेकिन भारत सरकार ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

डॉ, स्वामी का कहना था कि सरकार में बैठे मंत्रियों के दामन इतने काले हैं कि उनको आसानी से ब्लैकमेल करके अपना काम निकाला जा सकता है। लेकिन अगर कैबिनेट के 10 फीसदी सदस्य भी पाकसाफ हो जाएं तो भ्रष्टाचार को मिटाया जा सकता है। उन्होंने मुद्रास्फीति के बढ़ने की वजह भी कालेधन को बताया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रह चुके डॉ. स्वामी का कहना था कि सप्लाई बढ़ने से महंगाई घटती है। लेकिन भारत में ऐसा क्यों हो रहा कि जीडीपी 8 फीसदी बढ़ रहा है यानी सप्लाई बढ़ रही है। फिर भी मुद्रास्फीति की दर घटने के बजाय बढ़ती चली गई। उन्होंने एक और महत्वपूर्व तथ्य पर जोर दिया कि भारत प्राकृतिक रूप से इतना समृद्ध है कि यहां बारहों महीने खेती हो सकती है, जबकि अमेरिका, यूरोप व चीन तक में केवल सात महीने खेती हो सकती है। बाकी पांच महीने उनके खेत बर्फ से ढंके रहते हैं। फिर भी हमारे यहां कृषि में निवेश नहीं हो रहा। हमारा 70 फीसदी औद्योगिक निवेश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ऐशोआराम की वस्तुओं में होता है। आखिर ऐसा क्यों है?

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